
हिमाचल प्रदेश अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक संयुक्त संघर्ष मोर्चा के प्रदेश प्रधान महासचिव तारा चन्द रनोट ने हिमाचल प्रदेश सरकार को पत्र लिख कर अंतर्जातीय विवाह पर प्रोत्साहन राशि पचास हजार रुपये से बढ़ाकर दो लाख रुपये करने पर प्रदेश सरकार का धन्यवाद किया है। रनोट ने पत्र में जाहिर किया है कि अनुसूचित जातियां सदियों से समाज में फैली छुआछूत जैसी भयंकर बीमारी से निजात पाने कि लिए जूझ रही हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार ने एक अच्छा कदम उठाया है जो कि समाज में फैली जात पात, छुआछूत, ऊंच-नीच जैसी कुरीतिओं को दूर करने में मील का पत्थर साबित होगा।उन्होंने ने प्रदेश सरकार से अनुरोध किया है कि इस तरह की समाज में फैली विषमताओं को जल्द से जल्द दूर करने के लिए इस राशि को दो लाख रुपये से बढाकर दस लाख रुपये की जाये ताकि समाज में इस तरफ ध्यान आकर्षित हो। रनोट ने 14 अप्रैल सन 2025 को भारत रत्न डॉ भीमराव अम्बेदकर की 134वीं जयंती पर राज्य स्तरीय सम्मेलन शिमला के नजदीक शोधी में इस बात को जनता के सामने रखा था और लो्गों ने भरपूर सहयोग दिया था कि इस राशि को दस लाख रुपये किया जाये और प्रदेश सरकार से यह मामला उठाया जाये। लेकिन रनोट ने चिंता जाहिर की है कि कुछ समाज विरोधी ताकतें हिमाचल सरकार के अंतर्जातीय विवाह की प्रोत्साहन राशि को मात्र दो लाख रूपये करने के फैसले पर रोष जता रही है जो कि समाज में फैली छुआछूत, ऊंच-नीच, जात पात को जारी रखने के सिवाए कुछ भी नहीं है। जनता के सामने इस प्रकार का रोष व्यक्त करना शांतिपूर्ण प्रदेश में उपद्रव फैलाने के सिवाए और कुछ नहीं है। अनुसूचित जाति के लोगों को गैर अनुसूचित जाति के युवक एवं युवतिओं से अंतर्जातीय विवाह करने में कोई परेशानी नहीं है क्योंकि इस पढे लिखे समाज में व्यसक युवक – युवतिओं स्वयं फैसला लेने में सक्षम है जो कि एक कानुनी कदम भी है। समाज विरोधी ताकतें अगर इस तरह के अपवाद एवं विष समाज में फ़ैलाने की कोशिश करती है और शांति प्रिय राज्य में अशांति फैलाती है तो ऐसी ताकतों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता 2023 एवं अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचारनिवारण) अधिनियम की उपयुक्त धाराओं के अंतर्गत आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए। उनहोंने ने खेद प्रकटकिया कि आज तक ऐसी ताकर्तों को रोकने के लिए सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाये हैं।
रनोट ने बताया कि बाबा साहब द्वारा निर्मित संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों को जमीनी स्तर में लागू करने के लिए अनुसुचित जातिओं की विभिन्न संस्थाओं को या तो सड़को में आक्रोश दिखाना पड़ता है या न्याय के लिए कचहरियों के दरवाजे खटखटाने पड़ते हैं जो समाज में उचित सन्देश नहीं देता।